Monday, June 12, 2017

A Story: The Challange चुनौती

Today Nothing To Write So i Decided To Write A Story I Hope You All Will Like That
वृन्दावन गया था। बाँके बिहारी के दर्शन करने के पश्चात् मन में आया कि
यमुना के पवित्र जल में भी डुबकी लगाता चलूँ। पवित्र नदियों में स्नान करने का
अवसर रोज-रोज थोड़े ही मिलता है।
यमुना के घाट सुनसान से थे। हाँ, बन्दरों की सेना अवश्य अपनी इच्छानुसार
वहाँ विचरण कर रही थी। सीढ़ियाँ और बारादरियाँ टूटी-फूटी पड़ी थी। लगा कि
वहाँ महीनों से सफाई नहीं हुई है। परन्तु मुझे तो स्नान करना ही था। जल में प्रवेश
करने से पूर्व मैंने दोर्नो हाथ जोड़कर ऊँची आवाज में कहा-"यमुना मैया, तुम्हारी
जय!''
''मुझे मैया नहीं, अपनी दासी कहो बेटा। और दासियों की जय कभी नहीं
बोली जाती।'' अचानक एक उदास-सा स्वर मेरे कानों में पड़ा, जैसे कि कोई
दुखिया बूढ़ी औरत बोल रही हो।
मैंने चौंक कर इधर-उधर देखा। घाट पर मेरे अतिरिक्त अन्य कोई था ही
नहीं। सोचा कि मेरे मन का वहम रहा होगा। कोई बूढ़ी औरत वहाँ होती तो दिखाई
ज़रूर देती।
मैंने झुककर हाथ से जल का स्पर्श किया, उसे माथे से छुआते हुए
कहा-"माँ, मुझे अपने पवित्र जल में स्नान करने की आज्ञा दें।"
इतना कहकर मैंने अपना दायाँ पाँव आगे बढ़ाया ही था कि फिर से वही
स्वर सुनाई दिया- "बेटा, दासियों से आज्ञा माँगना कब से शुरू कर दिया तुम लोगों
ने? इसमें डुबकी लगाकर क्यों अपनी सेंट लगी देह को गंदी और बदबूदार बनाना
चाहते हो?''
आवाज सुनकर एक तरह से जड़ होकर रह गया था मैं। मैं समझ गया था
कि आवाज यमुना के भीतर से ही आ रही है। इसलिए साहस करके कहा- "माँ
जी, हम भारतवासियों के लिए तो आप हमेशा से ही माँ से बढ़कर वंदनीय तथा
पवित्र रही हैं और रहेंगी। कृपया, स्वयं को दासी मत कहिए।''
"बेटा, तुम लोगों ने मेरे साथ जैसा व्यवहार किया है, ऐसा सिर्फ दास-दासियों
के साथ ही हुआ करता है। मुझ पर बाँध बनाए, विद्युत पैदा की। खेतों की सिंचाई
की, पीने को जल लिया। बदले में मेरी सूखती जलधार में सभी नगरों के गन्दे नाले
तथा कारखानों के उत्सृज्य पदार्थ मुझमें धकेल दिए। मेरे किनारों पर खड़े पेड़ों को काटकर वहां सुन्दर-सुन्दर भवन बना डाले । इस प्रकार अब मैं सूर्य-पुत्री कालिन्दी
 नहीं, मानव मात्र के टट्टी-पेशाब, थूक और मवाद को बहा ले जाने वाली एक गन्दी नाली बनकर रह गई हूँ। चलो छोड़ो, यदि आज तुम आँख व नाक बंद किये बिना एक डुबकी लगाकर दिखा दो तो, तभी मैं तुम्हें अपना पुत्र मानकर आर्शीवाद दूँगी। '' यमुना मैया मुझे चुनौती दे रही थी।
मैं तो स्नान करने के लिए तैयार ही था। अपने दोनों पाँव अभी मैंने पानी में रखे ही थे कि हवा के एक तेज झोंके के साथ तीखी बदबू बलपूर्वक मेरे नथुनों में घुस गई। मेरी आँखों के ठीक सामने से किसी इनसान की टट्टी का एक लौंदा जल में तैरता हुआ निकल रहा था। मन कच्चा हो आया, लगा कि उलटी होगी। मैं उलटे पाँव घाट से बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
किसी बुढ़िया के सिसकने का स्वर मेरा पीछा कर रहा था।

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